परशुराम जन्म कथा

 परशुराम जन्म कथा

परशुराम जन्म कथा



भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि है और माता रेणुका है। एक समय की बात है जब ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका ने पुत्रेष्टि यज्ञ का अनुष्ठान किया था, यज्ञ की पूर्ति के फल स्वरुप भगवान देवेंद्र प्रगट हुए और उन्होंने वीर और तेजस्वी संतान होने का वरदान दिया। देवेंद्र के वरदान से माता रेणुका ने गर्भ धारण किया और वैशाख माह के शुक्लपक्ष की तृतिया तिथि को भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। किन्तु इसके पूर्व की कथा भी बहोत रोचक है।


प्राचीन काल में कन्नौज गाधि नामक राजा राज करते थे। उन्हें एक सुन्दर और रुपवान पुत्री थी जिनका नाम सत्यवती था। आगे जाके सत्यवती का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र के साथ हुआ। विवाह के पश्चात महर्षि भृगु ने अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद दिया और मनोवांछित वर मांगने को कहा। महर्षि की बात सुन पुत्रवधु सत्यवती ने अपनी माता के लिए वर मांगने की इच्छा प्रगट की। उन्होंने कहा मुझे मेरी माता की लिए वर चाहिये की उन्हें एक तेजस्वी पुत्र हो। महर्षि भृगु ने पुत्रवधु की इच्छा स्वीकाराते हुए कहा –


भृगु – “हे पुत्री..!! में तुम्हारी मातृ प्रेम भावना से अति प्रसन्न हुँ। अतः में तुम्हे और तुम्हारी माता दोनों को इचित संतान की प्राप्ति हेतु वर प्रदान करता हुँ। उन्होंने वर के साथ साथ दो चरु पात्र भी पुत्रवधु सत्यवती को दिए और कहा – “हे पुत्री, जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करना और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना।”


यहाँ जब सत्यवती की माता को यह पता चला की महर्षि भृगु ने पुत्री सत्यवती को उत्तम संतान प्राप्त होने के लिए चरु पात्र दिए है तो माता ने उत्तम पुत्र होने की लालसा में अपना चरु अपनी पुत्री के चरु से बदल दिया। चरु बदले जाने से अंजान सत्यवती ने अपनी माता को दिए हुए चरु का सेवन कर लिया। यह बात महर्षि भृगु ने अपनी योगशिक्ति से ज्ञात कर ली थी। महर्षि भृगु पुत्रवधु सत्यवती से मिले और उसे सारा वृतांत बताया और कहा – “हे पुत्री, तुम्हारी माता ने छल से तुम्हारा चरु खुद के चरु से बदल दिया है अतः मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी संतान ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेंगी और  तुम्हारी माता की संतान क्षत्रिय होते हुए भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेंगी। तब पुत्रवधु सत्यवती ने महर्षि भृगु से प्रार्थना की भले ही मेरे पौत्र का आचरण क्षत्रिय जैसा हो किन्तु मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करने वाला हो। इसी के चलते सत्यवती के गर्भ से महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ और जब ऋषि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ तब रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ जो एक ब्राह्मण कुल में जन्म होने के प्रश्चात भी उनका आचरण एक क्षत्रिय की भांति था।