पवनसुत हनुमान आरती
जयति मंगलागार, संसार,
भारापहर, वानराकार विग्रह पुरारी।
राम-रोषानल, ज्वालमाला
मिषध्वान्तचर-सलभ-संहारकारी॥
जयति मरुदन्जनामोद-मन्दिर,
नतग्रीवसुग्रीव-दुःखैकबन्धो।
यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर,
सिद्ध-सुर-सज्जनानन्दसिन्धो॥
जयति रुद्राग्रणी, विश्ववन्द्याग्रणी,
विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती।
सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी,
रामहित, रामभक्तानुवर्ती॥
जयति संग्रामजय, रामसन्देशहर,
कौशला-कुशल-कल्याणभाषी।
राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि
नर-नारि-शीतलकरणकल्पशाषी॥
जयति सिंहासनासीन सीतारमण,
निरखि निर्भर हरष नृत्यकारी।
राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा
तुलसि-मानस-रामपुर-विहारी॥
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