पवनसुत हनुमान आरती

पवनसुत हनुमान आरती


पवनसुत हनुमान आरती



जयति मंगलागार, संसार,


भारापहर, वानराकार विग्रह पुरारी।

राम-रोषानल, ज्वालमाला

मिषध्वान्तचर-सलभ-संहारकारी॥

जयति मरुदन्जनामोद-मन्दिर,

नतग्रीवसुग्रीव-दुःखैकबन्धो।

यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर,

सिद्ध-सुर-सज्जनानन्दसिन्धो॥

जयति रुद्राग्रणी, विश्ववन्द्याग्रणी,

विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती।

सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी,

रामहित, रामभक्तानुवर्ती॥

जयति संग्रामजय, रामसन्देशहर,

कौशला-कुशल-कल्याणभाषी।

राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि

नर-नारि-शीतलकरणकल्पशाषी॥

जयति सिंहासनासीन सीतारमण,

निरखि निर्भर हरष नृत्यकारी।

राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा

तुलसि-मानस-रामपुर-विहारी॥