चातुर्मास व्रत कथा

 चातुर्मास व्रत कथा


चातुर्मास व्रत कथा



शास्त्रों के अनुसार राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। घबराए इंद्रदेव व अन्य सभी देवताओं ने जब भगवान विष्णु से सहायता मांगी तो श्री हरि ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से दान मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने दान में तीन पग भूमि मांगी। दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप लिया और तीसरा पग कहां रखे जब यह पूछा तो बलि ने कहा कि उनके सिर पर रख दें।


इस तरह बलि से तीनों लोकों को मुक्त करके श्री नारायण ने देवराज इंद्र का भय दूर किया। लेकिन राजा बलि की दानशीलता और भक्ति भाव देखकर भगवान विष्णु ने बलि से वर मांगने के लिए कहा। बलि ने भगवान से कहा कि आप मेरे साथ पाताल चलें और हमेशा वहीं निवास करें। भगवान विष्णु ने अपने भक्त बलि की इच्छा पूरी की और पाताल चले गए। इससे सभी देवी-देवता और देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी। 


देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कराने लिए एक युक्ति सोची और एक गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुँच गईं। इन्होंने राजा बलि को अपना भाई मानते हुए राखी बांधी और बदले में भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करने का वचन मांग लिया। भगवान विष्णु अपने भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए बलि को वरदान दिया कि वह साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे, इसलिए इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।