श्री भगवान चित्रगुप्त आरती

श्री भगवान चित्रगुप्त आरती


श्री भगवान चित्रगुप्त आरती



ॐ जय चित्रगुप्त हरे,

स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।

भक्त जनों के इच्छित,
फल को पूर्ण करे॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तन सुखदायी।

भक्तन के प्रतिपालक,
त्रिभुवन यश छायी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

रूप चतुर्भुज,
श्यामल मूरति, पीताम्बर राजै।

मातु इरावती,
दक्षिणा, वाम अङ्ग साजै॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कष्ट निवारण, दुष्ट संहारण,
प्रभु अन्तर्यामी।

सृष्टि संहारण, जन दु:ख हारण,
प्रकट हुये स्वामी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

कलम, दवात, शङ्ख,
पत्रिका, कर में अति सोहै।

वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवन मन मोहै॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

सिंहासन का कार्य सम्भाला,
ब्रह्मा हर्षाये।

तैंतीस कोटि देवता,
चरणन में धाये॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

नृपति सौदास, भीष्म पितामह,
याद तुम्हें कीन्हा।

वेगि विलम्ब न लायो,
इच्छित फल दीन्हा॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

दारा, सुत, भगिनी,
सब अपने स्वास्थ के कर्ता।

जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुम तज मैं भर्ता॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरण गहूँ किसकी।

तुम बिन और न दूजा,
आस करूँ जिसकी॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं।

चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥

न्यायाधीश बैकुण्ठ निवासी,
पाप पुण्य लिखते।

हम हैं शरण तिहारी,
आस न दूजी करते॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे...॥