हल षष्ठी व्रत कथा

 हल षष्ठी व्रत कथा



हल षष्ठी व्रत कथा




प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी जो गर्भवती थी और जिसका प्रसव काल बहुत निकट था। एक तरफ ग्वालिन अपनी प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उस पीड़ा में भी उसका मन गाय भैंस का दूध बेचने की तरफ लगा हुआ था। ग्वालिन सोचने लगी की अगर मेरा प्रसव हो गया तो फिर ये गौ रस बेकार हो जाएगा। इसलिए ग्वालिन फटाफट उठी और सिर पर दूध दही की मटकी रखकर बेचने के लिए निकल गई। रास्ते में वह किसी झरबेरी की ओट में चली गई और वहां जहां उसने एक पुत्र को जन्म दिया।


बच्चे का जन्म देने के बाद भी उसका मन दूध, दही आदि चीजों के बेचने में लगा हुआ था। तो वह बच्चे को वहीं कपड़े में लपेटकर छोड़ कर चली गई और गांवों की ओर दूध दही बेचने चल दी। संयोग से उस दिन भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि थी यानी हल षष्ठी तिथि थी। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को उसने भैंस का दूध बताकर पूरे गांव में बेच दिया। उधर जिस झरबेरी के नीचे उस बच्चे को छोड़ा था, उसके पास ही एक किसान खेत में हल चला रहा था। अचानक से किसान के बैल भड़क गए और हल का फल बच्चे के शरीर में घूस गया, जिससे बच्चा मर गया।


मरे हुए बच्चे को देखकर किसान बहुत दुखी हुआ और उसने हिम्मत से काम लेकर उसी झरबेरी के कांटों से ही बच्चे को टांके लगा दिए और वहीं छोड़कर चला गया। जब ग्वालिन सारा दूध, दही बेचकर अपने बच्चे पास आई तो बच्चे को मरा हुआ देखा। बच्चे को इस अवस्था में देखकर वह समझ गई कि यह सब उसके ही पाप की सजा है। मन ही मन अपने आपको कोसने लगी कि अगर असत्य बोलकर दूध ना बेचा होता है और गांव की महिलाओं की महिलाओं का धर्म भ्रष्ट ना किया होता है तो मेरे बच्चे की यह दशा ना होती। उसने गांव वालों को सारी सच्चाई बताकर प्रायश्चित करने के बारे में विचार किया।


ग्वालिन तुरंत उठी और गांव की महिलाओं को सारी बात बताकर माफी मांगने लगी और इस करतूत के बाद मिले दंड के बारे में बताने लगी। गांव की महिलाओं को ग्वालिन पर रहम आ गया और उस पर रहम खाकर क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। जब ग्वालिन गांव से निकलकर वापस अपने बच्चे के पास पहुंची तो उसका बच्चा जीवित हो गया था। उसने ईश्वर का बहुत धन्यवाद कहा और आगे से फिर झूठ ना बोलने का प्रण लिया।