श्री प्रेतराज चालीसा
॥ दोहा ॥
गणपति की कर वंदना,गुरु चरनन चितलाय।
प्रेतराज जी का लिखूं,चालीसा हरषाय॥
जय जय भूताधिप प्रबल,हरण सकल दु:ख भार।
वीर शिरोमणि जयति,जय प्रेतराज सरकार॥
॥ चौपाई ॥
जय जय प्रेतराज जग पावन।महा प्रबल त्रय ताप नसावन॥
विकट वीर करुणा के सागर।भक्त कष्ट हर सब गुण आगर॥
रत्न जटित सिंहासन सोहे।देखत सुन नर मुनि मन मोहे॥
जगमग सिर पर मुकुट सुहावन।कानन कुण्डल अति मन भावन॥
धनुष कृपाण बाण अरु भाला।वीरवेश अति भृकुटि कराला॥
गजारुढ़ संग सेना भारी।बाजत ढोल मृदंग जुझारी॥
छत्र चंवर पंखा सिर डोले।भक्त बृन्द मिलि जय जय बोले॥
भक्त शिरोमणि वीर प्रचण्डा।दुष्ट दलन शोभित भुजदण्डा॥
चलत सैन काँपत भूतलहू।दर्शन करत मिटत कलि मलहू॥
घाटा मेंहदीपुर में आकर।प्रगटे प्रेतराज गुण सागर॥
लाल ध्वजा उड़ रही गगन में।नाचत भक्त मगन हो मन में॥
भक्त कामना पूरन स्वामी।बजरंगी के सेवक नामी॥
इच्छा पूरन करने वाले।दु:ख संकट सब हरने वाले॥
जो जिस इच्छा से आते हैं।वे सब मन वाँछित फल पाते हैं॥
रोगी सेवा में जो आते।शीघ्र स्वस्थ होकर घर जाते॥
भूत पिशाच जिन्न वैताला।भागे देखत रुप कराला॥
भौतिक शारीरिक सब पीड़ा।मिटा शीघ्र करते हैं क्रीड़ा॥
कठिन काज जग में हैं जेते।रटत नाम पूरन सब होते॥
तन मन धन से सेवा करते।उनके सकल कष्ट प्रभु हरते॥
हे करुणामय स्वामी मेरे।पड़ा हुआ हूँ चरणों में तेरे॥
कोई तेरे सिवा न मेरा।मुझे एक आश्रय प्रभु तेरा॥
लज्जा मेरी हाथ तिहारे।पड़ा हूँ चरण सहारे॥
या विधि अरज करे तन मन से।छूटत रोग शोक सब तन से॥
मेंहदीपुर अवतार लिया है।भक्तों का दु:ख दूर किया है॥
रोगी, पागल सन्तति हीना।भूत व्याधि सुत अरु धन छीना॥
जो जो तेरे द्वारे आते।मन वांछित फल पा घर जाते॥
महिमा भूतल पर है छाई।भक्तों ने है लीला गाई॥
महन्त गणेश पुरी तपधारी।पूजा करते तन मन वारी॥
हाथों में ले मुगदर घोटे।दूत खड़े रहते हैं मोटे॥
लाल देह सिन्दूर बदन में।काँपत थर-थर भूत भवन में॥
जो कोई प्रेतराज चालीसा।पाठ करत नित एक अरु बीसा॥
प्रातः काल स्नान करावै।तेल और सिन्दूर लगावै॥
चन्दन इत्र फुलेल चढ़ावै।पुष्पन की माला पहनावै॥
ले कपूर आरती उतारै।करै प्रार्थना जयति उचारै॥
उनके सभी कष्ट कट जाते।हर्षित हो अपने घर जाते॥
इच्छा पूरण करते जनकी।होती सफल कामना मन की॥
भक्त कष्टहर अरिकुल घातक।ध्यान धरत छूटत सब पातक॥
जय जय जय प्रेताधिप जय।जयति भुपति संकट हर जय॥
जो नर पढ़त प्रेत चालीसा।रहत न कबहूँ दुख लवलेशा॥
कह भक्त ध्यान धर मन में।प्रेतराज पावन चरणन में॥
॥ दोहा ॥
दुष्ट दलन जग अघ हरन,समन सकल भव शूल।
जयति भक्त रक्षक प्रबल,प्रेतराज सुख मूल॥
विमल वेश अंजिन सुवन,प्रेतराज बल धाम।
बसहु निरन्तर मम हृदय,कहत भक्त सुखराम॥
"प्रेतराज चालीसा एक प्रभावशाली प्रार्थना है जो भक्तों को प्रेतराज सरकार की कृपा प्राप्त करने का माध्यम मानी जाती है। प्रेतराज की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए की जाती है जो किसी शारीरिक या मानसिक रोग से पीड़ित हैं या जिन पर बुरी आत्माओं का प्रभाव है। मेहंदीपुर बालाजी में प्रेतराज सरकार की भक्ति और उनकी चालीसा का पाठ करने से भक्तों को दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।"
"ऐसा माना जाता है कि प्रेतराज चालीसा का नियमित पाठ रोगों से मुक्ति, बुरी शक्तियों से रक्षा, और मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। मेहंदीपुर बालाजी के प्रांगण में अनेक भक्तों ने चमत्कारी रूप से अपने रोगों से मुक्ति पाई है और नकारात्मक ऊर्जाओं से निजात पाई है।"
"प्रेतराज चालीसा का सर्वोत्तम लाभ प्राप्त करने के लिए भक्तों को स्नान करने के बाद इसका पाठ करना चाहिए। पाठ के समय सिंदूर, पुष्प, और घी का दीपक चढ़ाने से इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। यह विधि भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि लाने में सहायक मानी जाती है।"
"प्रेतराज का सिंह पर आरूढ़ होना और उनके हाथों में शस्त्रों का धारण करना यह दर्शाता है कि वह हर प्रकार की बुरी आत्माओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय पाने में सक्षम हैं। उनके शस्त्र न केवल रक्षा के प्रतीक हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि कोई भी कष्ट या चुनौती उनकी कृपा से दूर हो सकती है।"
"आज के तनावपूर्ण जीवन में, जहाँ हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक या शारीरिक कष्ट का सामना कर रहा है, प्रेतराज चालीसा का पाठ एक सशक्त साधन है। यह नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है और व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मविश्वास और ईश्वर के प्रति भक्ति का मार्ग दिखाता है।"
"कई भक्तों का यह अनुभव रहा है कि प्रेतराज चालीसा के पाठ से उनके जीवन में चमत्कारी परिवर्तन आए हैं। रोगी ठीक हुए हैं, मानसिक विकार दूर हुए हैं और उन्हें अपार मानसिक शांति प्राप्त हुई है। प्रेतराज सरकार के दरबार में आने वाले हर व्यक्ति को अपने मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।"
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